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Brand Awareness in 2025 बढ़ाने के लिए Top 10 Content Formats to Boost

 Brand Awareness in 2025  बिना कंटेंट के, आप अपने लक्षित बाजार से संवाद नहीं कर पाएंगे, अकेले लोगों को अपने उत्पाद को भाग्य से खरीदने के लिए राजी करना तो दूर की बात है। एक मार्केटर के तौर पर, आप जानते हैं कि आपके ब्रांड के बारे में लोगों को बताने के लिए विविध कंटेंट फ़ॉर्मेट में उत्तर छिपा है। इसलिए, आप इंटरनेट पर ट्रेंड, कारगर रणनीति और बिक्री में मदद करने वाले मार्केटिंग कंटेंट टाइप की तलाश करते हैं। लेकिन, बहुत ज़्यादा जानकारी तक पहुँचना भारी पड़ सकता है। तो, आप इन मार्केटिंग कंटेंट टाइप को कैसे सीमित कर सकते हैं ताकि यह पता चल सके कि आपके व्यवसाय के लिए कौन-सा कंटेंट कारगर है? क्या आपको सिर्फ़ एक कंटेंट फ़ॉर्मेट पर ही टिके रहना चाहिए, या आपको हर उपलब्ध प्लैटफ़ॉर्म का इस्तेमाल करना चाहिए? Formats for Brand Awareness ब्रांड जागरूकता के लिए अलग-अलग कंटेंट फ़ॉर्मेट हर कंटेंट टाइप के अलग-अलग लक्ष्य होते हैं। ब्लॉग पोस्ट SEO वैल्यू प्रदान करते हैं। वीडियो दर्शकों का ध्यान जल्दी से आकर्षित कर सकते हैं। इन्फोग्राफ़िक्स जटिल जानकारी को आसानी से समझने योग्य फ़ॉर्मेट में तोड़ देते है...

जानिये राजा भोज और गंगू तेली की कहानी | Kaha Raja Bhoj Or Kaha Gangu Teli

जानिये “कहां राजा भोज और कहाँ गंगू तेली” के पीछे की कहानी – Story Of Kaha Raja Bhoj Kaha Gangu Teli | इस कहावत को फिल्मी गाने में भी पिरोया गया। यही नहीं, तंज कसने के लिए भी इस कहावत का प्रयोग किया जाता हैं। कहावत लोकप्रिय है। ह ऐसी है कि आम बोलचाल में कहीं न कहीं सभी के जुबान से निकल ही जाती है। लेकिन इस कहावत की कहानी की सत्यता क्या है ?? हम इस पर प्रकाश डालेंगे।


मध्यप्रदेश के भोपाल से करीब ढ़ाई सौ किलोमीटर दूर धार जिला ही राजा भोज की “धारानगरी” कहां जाता है। 11 वीं सदी में ये शहर मालवा की राजधानी रह चुका है और जिस राजा भोज ने इस नगरी को बसाया उस राजा की प्रशंसा करते आज तक बड़े बड़े विद्वान् ही नहीं राजा महाराजा और सामान्य जन भी करते आ रहे हैं।
राजा भोज के प्रशंसकों की देश-विदेश में कमी नहीं है। बहुमुखी प्रतिभा के धनी राजा भोज शस्त्रों के ही नहीं बल्कि शास्त्रों के भी ज्ञाता थे। उन्होंने वास्तुशास्त्र, व्याकरण, आयुर्वेद, योग, साहित्य और धर्म पर कई ग्रंथ और टीकाएँ लिखे। जो विद्वज्जनों से तिरोहित नही है।
कहा जाता है कि मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल को एक जमाने में “भोजपाल” कहा जाता था और बाद में इसका “ज” गायब होकर ही इसका नाम “भोपाल” पड़ गया | वीआईपी रोड से भोपाल शहर में प्रवेश करते ही राजा भोज की एक विशाल मूर्ति के दर्शन होते हैं |

11 वीं सदी में अपने 40 साल के शासन काल में महाराज भोज ने कई मंदिरों और इमारतों का निर्माण करवाया उसी में से एक है भोजशाला। हा जाता है कि राजा भोज सरस्वती के उपासक थे और उन्होंने भोजशाला में सरस्वती की एक प्रतिमा भी स्थापित कराई थी जो आज लंदन में मौजूद है।

“गंगू तेली नहीं अपितु गांगेय तैलंग”
राजा भोज ने भोजशाला तो बनाई ही मगर वो आज भी जन जन में जाने जाते हैं एक कहावत के रूप में- “कहां राजा भोज कहां गंगू तेली“ । किन्तु इस कहावत में गंगू तेली नहीं अपितु “गांगेय तैलंग” हैं। गंगू अर्थात् गांगेय कलचुरि नरेश और तेली अर्थात् चालुका नरेश तैलय दोनों मिलकर भी राजा भोज को नहीं हरा पाए थे।


ये दक्षिण के राजा थे। और इन्होंने धार नगरी पर आक्रमण किया था मगर मुंह की खानी पड़ी तो धार के लोगों ने ही हंसी उड़ाई कि “कहां राजा भोज कहां गांगेय तैलंग” । गांगेय तैलंग का ही विकृत रूप है “गंगू तेली” । जो आज “कहां राजा भोज कहां गंगू तेली“ रूप में प्रसिद्ध है ।

धार शहर में पहाड़ी पर तेली की लाट रखी हैं. कहा जाता है कि राजा भोज पर हमला करने आए तेलंगाना के राजा इन लोहे की लाट को यहीं छोड़ गए और इसलिए इन्हें तेली की लाट कहा जाता है।

“कहाँ राजा भोज, कहाँ गंगू तेली” कहावत का यही असली रहस्य हैं । इसी पर चल पड़ी थी यह कहावत।

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