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South Africa Dominates England in First ODI: Markram's Blitz and Maharaj's Spin Lead to Historic Win

  🏏 Match Overview: South Africa 's Commanding Victory In a remarkable display of skill and strategy, South Africa defeated England by 7 wickets in the first ODI at Headingley, Leeds , on September 2, 2025. Chasing a modest target of 132, South Africa reached 137/3 in just 20.5 overs, with 175 balls to spare. This victory marks a significant achievement, as it was South Africa's first-ever ODI win at this venue. 🔥 Aiden Markram's Record-Breaking Innings South Africa's vice-captain, Aiden Markram , delivered a blistering performance, scoring 86 runs off just 55 balls. His innings included a record-setting 23-ball half-century, the fastest by a South African opener in ODIs. Markram's aggressive approach set the tone for the chase, ensuring a swift and decisive victory. 🧙‍♂️ Keshav Maharaj's Spin Magic Spinner Keshav Maharaj was instrumental in dismantling England's batting lineup, taking 4 wickets for 22 runs. His tight lines and variations...

निषाद सम्राट राज राजा चोल कौन थे ? कौन थे प्रथम राजाराज चोल के महान सम्राट ? चोल राजवंश का उदय - Chola Dynasty History

निषाद सम्राट राज राजा चोल कौन थे ? कौन थे प्रथम राजाराज चोल के महान सम्राट ? चोल राजवंश का उदय -  Chol Vansh History in Hindi


राजाराज चोल प्रथम, दक्षिण भारत के चोल निषादवंशी कोली राजवंश के महान सम्राट थे. उन्होंने 985 से 1014 ईस्वी तक शासन किया. राजाराज चोल को "महान राजराज" के नाम से भी जाना जाता था. वह तमिल संस्कृति में काफ़ी महान माने जाते हैं. राजाराज चोल ने चोल साम्राज्य को अपने चरम पर पहुंचाया. उन्होंने कई नौसैनिक अभियान चलाए, जिनके फलस्वरूप मालाबार तट, मालदीव, श्रीलंका, थाईलैंड और मलेशिया पर उनका राजनीतिक प्रभाव फैल गया. राजाराज चोल वंश के पहले शासक नहीं थे.  विजयालय ने चोल वंश की स्थापना की थी.  विजयालय ने 850 से 870 ईस्वी तक शासन किया. उन्होंने पांड्यों और पल्लवों के बीच युद्ध का फ़ायदा उठाकर राजवंश की स्थापना की. विजयालय की वंशपरंपरा में लगभग 20 राजा हुए, जिन्होंने कुल मिलाकर चार सौ से अधिक वर्षों तक शासन किया


प्रथम राजराज चोल -

प्रथम राजाराज चोल दक्षिण भारत के चोल निषादवंशी कोली राजवंश के महान सम्राट थे जिन्होंने 985 से 144 तक राज किया। उनके शासन में चोलों ने दक्षिण में श्रीलंका तथा उत्तर में कलिंग तक साम्राज्य फैलाया राजराज चोल ने कई नौसैन्य अभियान भी चलाये, जिसके फलस्वरूप मालाबार तट, मालदीव तथा श्रीलंका को आधिपत्य में लिया गया।


राजराज चोल ने हिंदुओं के विशालतम मंदिरों में से एक, तंजौर के बृहदीश्वर मन्दिर का निर्माण कराया जो वर्तमान समय में यूनेस्को की विश्व धरोहरों में सम्मिलित है। उन्होंने सन 1000 में भू-सर्वेक्षण की महान परियोजना शुरू कराई जिससे देश को वलनाडु इकाइयों में पुनर्संगठित करने में मदद मिली।


राजराज चोल ने "शशिपादशेखर" की उपाधि धारण की थी। राजराज प्रथम ने मालदीव पर भी विजय प्राप्त की थी।


चोलों का उदय नौवीं शदी में हुआ। इनका राज्य तुंगभद्रा तक फैला हुआ था। चोल राजाओ ने शक्तिशली नौसैना का विकास किया। इस वंश की स्थापना विजयालय ने की। चोल वंश का दूसरा महान शासक कोतूतुङ त्रितीय था।



चोल राजवंश

चोल प्राचीन भारत का एक राजवंश था। दक्षिण भारत और निकटवर्ती अन्य देशों में तमिल चोल शासकों ने 9वीं शताब्दी से 13वीं शताब्दी के बीच एक अत्यंत शक्तिशाली हिंदू साम्राज्य का निर्माण किया।


'चोल' शब्द की व्युत्पत्ति विभिन्न प्रकार से की जाती है। कर्नल रीनो ने चोल शब्द को संस्कृत में "काल" एवं "कोल" से संबद्ध करते हुए इसे दक्षिण भारत के कृष्णवर्ण आर्य समुदाय का सूचक माना है। चोल शब्द से संस्कृत "चोर" तथा तमिल "चोलम" से भी संबद्ध है, इनसे कोई मत ठीक नहीं है। आरंभिक काल से ही चोल शब्द का प्रयोग इसी नाम के राजवंश द्वारा उपयोग किए जाने वाले पेज और भूभाग के लिए व्याहृत हो रहा है। संगमयुगीन मणिमेक्ले में चोलों को सूर्यवंशी कहा जाता है। चोलों के कई प्रतिद्वंद्वियों में शेंबियन भी है। शेंबियन के आधार पर उन्हें शिबि से उद्भूत सिद्ध किया जाता है। 12वीं शताब्दी के अनेक स्थानीय राजवंशों में करिकाल से उद्भट कश्यप गोत्रीय उपदेशक हैं।


चोलों के उल्लेख अत्यंत प्राचीन काल से ही प्राप्त होने लगे हैं। कात्यायन ने चोदों का उल्लेख किया है। अशोक के अभिलेखों में यह भी उपलब्ध बताया गया है। सबसे पहले संगमयुग में दक्षिण भारतीय इतिहास को पहली बार प्रभावित किया गया था। संगमयुग के कई महत्वपूर्ण चोल सम्राटों में करिकाल के महान प्रसिद्ध संगमयुग के चोल का इतिहास अज्ञात है। फिर भी चोल-वंश-परंपरा अक्षुण्ण समाप्त नहीं हुई क्योंकि रेनन्दु (जिला कुदाया) प्रदेश में चोल पल्लवों, चालुक्यों और राष्ट्रकूटों का अधिपत्य शासन कायम था।


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